Sunday 23 August 2020

कुंठाग्रस्त

 

कुंठाग्रस्त 


भी है ख़ून में पानी 

अभी सैलाब देखेंगे,

अभी तो गूँज लो नारों 

चिता में आग देखेंगे। 


बजा लो मज़लिसों करतल 

लगा लो जीत के नारे, 

क़दम पर हुक्मरानों के 

तुम्हारे ख़्वाब देखेंगे। 


कल तू मरेगा तो 

नुमाईशें होंगी मैय्यत की,

साबूत न बचूँगा मैं 

सभी बारात देखेंगे। 


ज़र्रे कर्ज़ में दबकर 

अभी अब धूल बनते हैं,

कफ़न की ओढ़कर चादर 

अभी वो रात देखेंगे। 


ज़म्हूरियत हो गई रूसवा 

वतन से लाडली-प्यारी,

ग़ुलामों के ग़ुलामी की 

सभी सौग़ात देखेंगे। 


मुट्ठी में भरा था मैं 

कभी जो भींचकर माटी,

अभी तो राख़ बनने के 

वो सब हालात देखेंगे। 


वे कहते, जी रहा हूँ मैं 

गगन में मुक्त पंक्षी-सा,

ठहर जा ओ रे तू पगले! 

अभी एहसास देखेंगे। 


लगा लो देशवालों तुम 

ज़म्हूरियत का भले नारा,

माथे की शिकन पर रेंगते 

अवसाद देखेंगे। 


सुलाकर आत्मा अपनी 

तू कब तक मौन बैठेगा?

जलती बस्तियों की राख़ में 

हम-आप देखेंगे। 


अमन की ओढ़ लो चादर 

है मुमकिन भूल जाओगे,

लगेगी आग बस्ती में 

जो क़त्लेआम देखेंगे। 


सितार-ए-हिंद, जो हैं आज 

धरती के नुमाईंदे 

पड़ेगी थाप चकरी की 

नया सरताज़ देखेंगे। 


सुन लो आज! चौकस तुम 

सत्ता के नुमाईंदों, 

कुर्सी के पलटने का 

सुनहरा ख़्वाब देखेंगे। 

    

लेखक ग़ुम है गलियों में 

ओढ़े जश्न का सेहरा,

अभी तो रो रहा हूँ मैं 

तुझे बर्बाद देखेंगे। 


इबारत कह गए 'राहत'

कहते शायरी अपनी,

मिला था ख़ून में माटी 

अभी रक्ताभ देखेंगे। 


परिंदों छोड़ दो उड़ना 

बे-फ़ितरत हो गया मौसम,

सितमग़र बादलों के हम 

अभी अंदाज़ देखेंगे। 


वतन के नाम क़ुर्बानी 

फिर हम कह चले ज़िंदा,

मुर्दों की हुई बस्ती 

कहाँ आगाज़ देखेंगे!  


बजा लो मंदिरों घंटे 

अज़ानों की नुमाईश में,

लाशों की दबिश में हम 

कहाँ इंसान देखेंगे!             




 'एकलव्य' 

चित्र : साभार गूगल 

13 comments:

  1. समसामयिक और सटीक। लाजवाब।

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  2. ज़र्रे कर्ज़ में दबकर

    अभी अब धूल बनते हैं,

    कफ़न की ओढ़कर चादर

    अभी वो रात देखेंगे।
    Most considerable

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  3. वाह बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति 👌

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  4. वाह! नया अंदाज़, नए तेवर!!! बधाई ध्रुवजी!!!

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  5. परिंदों छोड़ दो उड़ना /बे-फ़ितरत हो गया मौसम,/

    सितमग़र बादलों के हम /अभी अंदाज़ देखेंगे।///

    बहुत खूब प्रिय ध्रुव ! इतने दिन बाद कलम का मौन टूटा तो एक ओज भरी रचना का सृजन हुआ | कवि मन की अनकही वेदना निर्झर सी प्रवाहित हुई है रचना में !| कवि का धर्म है समाज के दर्द को जीवित रख, उसे सबसे परिचित करवा कर जनमानस में संवेदनाएं जगाना | रचना के सभी बंध अपनी कहानी को पूर्णतया कहने में सक्षम हैं | रचना समाज और सत्ता के गलियारों में व्याप्त असंवेदनशीलता पर गहरा प्रहार करती है |तमाम तरह के पाखंडों से जूझते आम आदमी की कुंठाएं एक कवि ही कह सकता है कोई और नहीं | सशक्त रचना के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं|

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  6. हालात की खोज-ख़बर लेती ओजस्वी कविता जो सोई हुई संवेदना को झकझोर रही है.
    बधाई एवं शुभकामनाएँ.

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  7. बजा लो मंदिरों घंटे

    अज़ानों की नुमाईश में,

    लाशों की दबिश में हम

    कहाँ इंसान देखेंगे!
    वाह!!!!
    समसामयिक जोशपूर्ण लाजवाब सृजन
    शानदार सृजन हेतु बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।

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  8. वतन के नाम क़ुर्बानी
    फिर हम कह चले ज़िंदा,
    मुर्दों की हुई बस्ती
    कहाँ आगाज़ देखेंगे!
    बेहद ओजपूर्ण सृजन,सादर नमन आपको

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  9. वाह!ध्रुव जी , ओज से लबालब भरा सृजन ।

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  10. वाह!
    आदरणीय सर यह आग यदि हर लेखनी में हो तो निश्चित अमावस्या की इस लंबी रात में सौ सूर्य का उजाला हो।
    आप माँ भारती के वह सपूत हैं जिन्हें माँ शारदे की पूर्ण कृपा प्राप्त है और आपकी लेखनी जन कल्याण हेतु समर्पित समर्पित। नारायण से मेरी प्रर्थना है कि आपकी लेखनी की यह दिव्यता यह तेज यूँ ही बनी रहे और आप यूँ ही हमे प्रेरित करते रहें।
    आपकी यह रचना पहले भी पढ़ी थी किंतु टिप्पणी करने से चूक गए इस हेतु क्षमा करिएगा। सौभाग्य मेरा जो आज पुनः पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ। कुछ रचनाएँ एसी होती हैं जो पाठक के स्मृति पटल पर सदा के लिए अंकित हो जाती हैं और उन्हें बारंबार पढ़ने की इच्छा होती है। ' क्रांति भ्रमित ' एवं ' कुंठाग्रस्त ' एसी ही रचनाएँ हैं।
    सुप्त आत्माओं को जगाने हेतु लेखनी का कर्तव्य है यूँ शंखनाद करना। कोटिशः प्रणाम 🙏

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  11. वाह...आपकी लेखनी का शंखनाद गुज रहा है पटल पर .."बजालो मंदिरों के घण्टे
    अजानों की नुमाईश में
    लाशों की दबिश में हम
    कहाँ इंसान देखेंगें"
    नमन आपकी लेखनी को...

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कुंठाग्रस्त

  कुंठाग्रस्त  अ भी है ख़ून में पानी  अभी सैलाब देखेंगे, अभी तो गूँज लो नारों  चिता में आग देखेंगे।  बजा लो मज़लिसों करतल  लगा लो जीत के नारे,...